Heeramandi Review:
संजय लीला भंसाली की Webseries हीरामंडी- द डायमंड बाजार OTT Plateform की दुनिया बहुप्रतीक्षित वेब सीरीजों में शामिल थी। इस सीरीज के साथ भंसाली ने OTT की दुनिया में कदम रखा है। ओटीटी के लिए संजय ने लाहौर की हीरामंडी में तवायफों की कहानी चुनी। आठ एपिसोड्स में रिलीज हुई सीरीज में मनीषा कोइराला सोनाक्षी सिन्हा समेत कई बेहतरीन कलाकार अहम किरदारों में हैं।
किरदार का इंट्रोडक्शन
इस वेब सीरीज की हीरामंडी बाजार की सबसे बड़ी तवायफ रिहाना बेगम से होती है जिसका किरदार सोनाक्षी सिन्हा ने निभाया है। एक ऐसा किरदार जिसे देखने के बाद बाज़ार की सारी तवायफें खौफ खाती हैं। कहानी की अगली कड़ी में यही सबसे बड़ा औदा मल्लिकाजान यानी मनीषा कोइराला संभालती हैं। कहानी में इतना बड़ा बदलाव क्यों और कैसे आता है ये स्पॉइलर का हिस्सा है जो हम आपको बताना नहीं चाहते। माँ, बहन, बेटी के किरदार में ये तवायफें एक दूसरे पर भारी पड़ती दिखती हैं। सबके किरदार में कुछ न कुछ खासियत है जो कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करता है। इस पर नवाबों का तड़का लगा है। नवाब जुल्फिकर के किरदार में शेखर सुमन, नवाब वली मोहम्मद के किरदार में फरदीन खान कमाल करते हैं।
खासियत
हीरामंडी की खासियत है संजय लीला भंसाली का डायरेक्शन, विजन, डायलॉग और दमदार परफॉरमेंस। हर एक सीन पर ध्यान दिया गया है। चेहरे पर जुल्फें आने के बाद एक तवायफ के एक्सप्रेशन कैसे होने चाहिए, ये बारीकी आपको संजय लीला भंसाली के काम में ही नज़र आएगी। हर एक किरदार को अलग कहानी देने की कोशिश की गई है। ऑडियंस का तय करना मुश्किल हो सकता है कि इतनी सारी एक्ट्रेसेज में से उन्हें किस का किरदार ज्यादा पसंद आया। ग्रैंड सेट, उर्दू भाषा का यही उपयोग। सिनेमाटोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक, पंजाबी बोलते शाही नौकर, आलीशान घराने सब शानदार है। आखिर का सीन और म्यूजिक रोंगटे खड़े कर देता है।
हीरामंडी की कहानी दो तवायफों के बीच की जंग है। एक ही परिवार की ये दो तवायफें अपने परिवार और बाज़ार की बाकी तवायफों के साथ अपना माहौल बनाती हैं। माँ के दिल में बेटियों के लिए कोई हमदर्दी नहीं। एक बेदर्द माँ मल्लिकाजान जो पहले बेटियों को कोठे की शान बनाना चाहती है, बहनों को घर की नौकरानी। कुछेक सीन में मल्लिकजान के इसी किरदार से नफरत हो जाएगी। लेकिन यही हीरामंडी की खासियत है नफरत भी है लेकिन वफादारी उससे ज्यादा है। इसी वफादारी की वजह से मल्लिकाजान की दी हुई जिल्लत वाली जिंदगी भी अच्छी लगती है।
कैसा रहा भंसाली का ओटीटी डेब्यू?
‘गोलियों की रासलीला: रामलीला’ के बाद से संजय लीला भंसाली पीरियड और कास्ट्यूम ड्रामा में निरंतर नए प्रयोग कर रहे हैं। बाजीराव मस्तानी, पद्मावत, गंगूबाई काठियावाड़ी के बाद अब उन्होंने बहुप्रतीक्षित हीरामंडी के साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पदार्पण कर दिया है।
यहां पर भी यथार्थ से दूर सपनीली रंगीन दुनिया को वह गढ़ने में कामयाब रहे हैं। हीरामंडी एक अलग दुनिया में ले जाने की कोशिश करती है। यह वह दुनिया है, जहां तवायफों के पात्र सशक्त हैं। हर तवायफ का एक साहब होता है। उनके साथ ही उनके संबंध होते हैं।
हालांकि, स्क्रीनप्ले में कई कमियां खटकती हैं। मसलन लाहौर का वह दौर उर्दू का था, जहां शायरियों की भरमार थी और जुबान में मिठास होती थी। वह जुबान और मिठास की कमी यहां पर खटकती है। कहानी फ्लैशबैक से कब वर्तमान में आती है, इसका बहुत ध्यान रखना होता है।
यहां पर सभी पात्रों के साथ वह पूरी तरह न्याय नहीं कर पाए हैं। लज्जो (रिचा चड्ढा) कहां से आती है। कुछ अता-पता नहीं चलता। मल्लिका लगातार वहीदा को अपमानित करती हैं। अपमान से तिलमिलाई वहीदा बदले की फिराक में है, लेकिन कोई धमाका करने में अक्षम नजर आती है।
उसकी बेटी का ट्रैक भी अधूरा है। अध्ययन सुमन के किरदार से जुड़ा रहस्योद्घाटन कोई घुमावदार मोड़ कहानी में नहीं लाता है। हीरामंडी का अखबार कहे जाने वाला उस्ताद (इंद्रेश मलिक) फरीदन के लिए कई लड़कियां बहुत आसानी से कोठे पर लाता है।
ऐसे कई दृश्य हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि शानो-शौकत से रहने वाली तवायफों की स्याह जिंदगी में संजय पूरी तरह उतर नहीं पाए हैं। ताजदार को छोड़कर बाकी सभी नवाबों के किरदार कमजोर नजर आते हैं, खास तौर पर फरदीन खान का।